भारत के उपराष्ट्रपति ने राज्यसभा की प्रथम बैठक की 73वीं वर्षगांठ के अवसर पर देशवासियों को शुभकामनाएं दीं और इस ऐतिहासिक दिन को गौरव और आत्म चिंतन का क्षण बताया. उन्होंने कहा कि यह साल विशेष है क्योंकि यह भारत के गणराज्य के 75वें वर्ष के साथ भी मेल खा रहा है.
उपराष्ट्रपति ने अपने संदेश में कहा कि राज्यसभा ने दशकों से जनहित से जुड़े मुद्दों को मजबूती से उठाया है और राष्ट्रीय विमर्श को दिशा दी है. उन्होंने संविधान सभा के सदस्यों को भी याद किया जिन्होंने सहयोग और सहमति की भावना के साथ जटिल विषयों पर भी गरिमापूर्ण चर्चा की.
संकल्प लेने की अपील
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने सभी सांसदों और जनप्रतिनिधियों से संसदीय मर्यादा और वाद-विवाद की उच्च परंपराओं को बनाए रखने की अपील की. उन्होंने कहा कि यह समय है जब हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि राष्ट्रहित और राष्ट्रीय सुरक्षा को हमेशा दलगत राजनीति और अन्य स्वार्थों से ऊपर रखा जाएगा.
राज्यसभा, जिसे ‘राज्यों की परिषद’ कहा जाता है, भारतीय संसद का उच्च सदन है और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसकी भूमिका हमेशा से अहम रही है. राज्यसभा कभी भंग नहीं होती है. इसमें सदस्यों का कार्यकाल लोकसभा की तुलना में एक साल ज्यादा यानी 6 साल होता है.
राज्यसभा के क्या काम होते हैं?
राज्यसभा विधेयकों (बिलों) को पारित करने में लोकसभा के साथ मिलकर कार्य करती है. आमतौर पर कोई भी विधेयक तब तक कानून नहीं बन सकता जब तक कि दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) से पारित न हो जाए. इसके बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी चाहिए होती. राज्यसभा का गठन राज्यों के प्रतिनिधित्व के लिए हुआ है. यह राज्यों के मुद्दों और हितों को केंद्र सरकार के स्तर पर उठाने का मंच देती है.
अधिकतम सदस्यों की संख्या 250 होती है
राज्य सभा सरकार की नीतियों, योजनाओं और कानूनों पर बहस करने का मंच है. राज्यसभा में चर्चा से सरकार की जवाबदेही तय होती है और नीतिगत निर्णयों में संतुलन बना रहता है. संविधान संशोधन विधेयकों को पारित करने के लिए राज्यसभा की भी दो-तिहाई बहुमत से मंजूरी आवश्यक होती है. राज्यसभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 होती है. जिसमें से 238 सदस्य निर्वाचित होते हैं जबकि 12 सदस्य भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित होते हैं.